ये जो स्वास्थ्य का मामला है न ,बड़ा ही नाजुक सा है| हमारे यंहा के सभ्य लोग वैद्यों से बहस करेंगे वो भी किस बात पे के,जी फलां फलां टूथपेस्ट तो ऐसे काम करता है ,वैसे काम करता है उस से हमारे बच्चे के दांत ऐसे हो गये ,उसके कैल्सियम की कमी थी दांत ख़राब होने लगे थे उस से ठीक हो गए| आयुर्वेद के अनुसार दंतधावन के लिए मधुर रसात्मक द्रव्य का प्रयोग अनुचित है तो, एकदम........ अब तो उसमे नमक भी आता है!
सच तो ये है विज्ञापनों का जादू पता नहीं, कंहा तक, हमारे परिवेश में घुस चुका है और अब उस के परिणाम, जो की सभी चौकानें वाले है ,हम सभी के सामने आने लगें हैं | कोई जरा मुझे समझाये के मेरे भाई दांतों को मलहम से घिसने पर पोषण कैसे मिलेगा |
रोजाना के आने वाले छोटी उम्र के रोगी निश्चय ही अल्प सत्व वाले होते हें उनकी रोगों से लड़ने की क्षमता और बच्चों से अपेक्षाकृत कम ही होती है , बच्चे के माता पिता बच्चे के दांत साफ़ करने के पीछै तो पड़े रहेंगे ,परन्तु बच्चा अपना खाना ठीक से चबा रहा है , इस बात की और उनका ध्यान दिलाना भी मानो हमारा बड़ा अपराध.........|
खाने को ठीक से चबाने का सबसे बड़ा फायदा ये होता हें के मुह के अंदर भोजन उस सामान्य तापमान पर आ जाता हें, जिसका के शरीर में प्रवेश के लिए एकदम उपयुक्त तापमान रहे जिस से भोजन के पाचन का श्रीगणेश भली भांती हो सके | अगर किसी भी बड़ी मशीन की कार्यप्रणाली पर जरा सा भी ध्यान दें तो पता चलेगा के तापमान का नियंत्रण ही उत्पादन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता हें ,तो यही बात उस परमपिता की बनाई हुई मशीन पर भी तो लागु होती है | आयुर्वेद की महत्ता मात्र रोगों को ठीक करने के लिए मात्र नहीं है ये तो वो परम विज्ञानं हें जो ये सिखाता हें के रोग हो ही ना और साथ ही साथ जिया कैसे जाये|
बहुत छोटे बच्चो के माता पिता को में समझाता हूँ के इन बच्चों को दांत धोना मत सिखायें, इन्हे चबाना सिखायें, चबायेंगे तो स्वास्थ रहेंगे ये भी, इनके दांत भी | बच्चे उल्टा सीधा खायेंगे ,क्यूँकी वो आसानी से बाजार में उपलब्ध है ,उनका विज्ञापन भी है | अपने आस पास में ये रोज देखता हूँ आप भी देखते ही हे | उन बच्चो के दांत जब गिरने लगें और नए आने लगें तब बहुत मुलायम ब्रश से धीरे धीरे किसी बेहद बारीक़ पिसे हुए दंतमंजन से उन्हें ये सिखाएं | इसके लिए भुना पिसा सुहागा, बारीक पीसी हल्दी, बारीक पीसी सोना गेरू मिट्टी आदि का अपने स्थानीय वैद्य की सलाह से उपयोग किया जा सकता हें और ये चीजें अगर बच्चा निगल भी जाये तो, उपकार ही करेंगे अपकार नही! बारीक पीसी हेड़ भी प्रयोग की जा सकती है |
कोशिश करें बच्चों को बहुत ज्यादा ठंडी या बहुत ज्यादा गर्म चीजे (तापमान की दृष्टि से) सेवन न करनें दें | कारण अब आपको पता ही है
और हाँ खुद के चबाने पे भी जरा ध्यान दें बहुत सी बीमारी से बच जायेंगे |
ओजस्वी आयुर्वेद( डॉ शर्मा क्लिनिक) के लिए वैद्य विवेक शर्मा द्वारा लिखित एवं वैद्या सुधा शर्मा द्वारा सम्पादित इस लेख के माध्यम से जन जागरण के लिये ये सुचना देते हैं की ग्रीष्म ऋतू प्रारंभ हो गयी है शरीर की बेट्री की डिस्चार्ज का समय है ,अपने वैद्य से मिल के अपनी प्रकृती के अनुसार रसायन सेवन आरम्भ कर दें |मेद के शरीर से निष्कासन का ये उत्तम समय है शब्दों में मोटापा घटाने पे जोर दें ऐसा समय हें इसका उपयोग करें|,दुसरे कृपया विज्ञापनों का सन्दर्भ न दें | अधिक विचारविमर्श के लिये msz box में आप सादर आमंत्रित है, हाँ उत्त्तर मेरी सुविधा से ही दिया जायेगा |
सच तो ये है विज्ञापनों का जादू पता नहीं, कंहा तक, हमारे परिवेश में घुस चुका है और अब उस के परिणाम, जो की सभी चौकानें वाले है ,हम सभी के सामने आने लगें हैं | कोई जरा मुझे समझाये के मेरे भाई दांतों को मलहम से घिसने पर पोषण कैसे मिलेगा |
रोजाना के आने वाले छोटी उम्र के रोगी निश्चय ही अल्प सत्व वाले होते हें उनकी रोगों से लड़ने की क्षमता और बच्चों से अपेक्षाकृत कम ही होती है , बच्चे के माता पिता बच्चे के दांत साफ़ करने के पीछै तो पड़े रहेंगे ,परन्तु बच्चा अपना खाना ठीक से चबा रहा है , इस बात की और उनका ध्यान दिलाना भी मानो हमारा बड़ा अपराध.........|
खाने को ठीक से चबाने का सबसे बड़ा फायदा ये होता हें के मुह के अंदर भोजन उस सामान्य तापमान पर आ जाता हें, जिसका के शरीर में प्रवेश के लिए एकदम उपयुक्त तापमान रहे जिस से भोजन के पाचन का श्रीगणेश भली भांती हो सके | अगर किसी भी बड़ी मशीन की कार्यप्रणाली पर जरा सा भी ध्यान दें तो पता चलेगा के तापमान का नियंत्रण ही उत्पादन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता हें ,तो यही बात उस परमपिता की बनाई हुई मशीन पर भी तो लागु होती है | आयुर्वेद की महत्ता मात्र रोगों को ठीक करने के लिए मात्र नहीं है ये तो वो परम विज्ञानं हें जो ये सिखाता हें के रोग हो ही ना और साथ ही साथ जिया कैसे जाये|
बहुत छोटे बच्चो के माता पिता को में समझाता हूँ के इन बच्चों को दांत धोना मत सिखायें, इन्हे चबाना सिखायें, चबायेंगे तो स्वास्थ रहेंगे ये भी, इनके दांत भी | बच्चे उल्टा सीधा खायेंगे ,क्यूँकी वो आसानी से बाजार में उपलब्ध है ,उनका विज्ञापन भी है | अपने आस पास में ये रोज देखता हूँ आप भी देखते ही हे | उन बच्चो के दांत जब गिरने लगें और नए आने लगें तब बहुत मुलायम ब्रश से धीरे धीरे किसी बेहद बारीक़ पिसे हुए दंतमंजन से उन्हें ये सिखाएं | इसके लिए भुना पिसा सुहागा, बारीक पीसी हल्दी, बारीक पीसी सोना गेरू मिट्टी आदि का अपने स्थानीय वैद्य की सलाह से उपयोग किया जा सकता हें और ये चीजें अगर बच्चा निगल भी जाये तो, उपकार ही करेंगे अपकार नही! बारीक पीसी हेड़ भी प्रयोग की जा सकती है |
कोशिश करें बच्चों को बहुत ज्यादा ठंडी या बहुत ज्यादा गर्म चीजे (तापमान की दृष्टि से) सेवन न करनें दें | कारण अब आपको पता ही है
और हाँ खुद के चबाने पे भी जरा ध्यान दें बहुत सी बीमारी से बच जायेंगे |
ओजस्वी आयुर्वेद( डॉ शर्मा क्लिनिक) के लिए वैद्य विवेक शर्मा द्वारा लिखित एवं वैद्या सुधा शर्मा द्वारा सम्पादित इस लेख के माध्यम से जन जागरण के लिये ये सुचना देते हैं की ग्रीष्म ऋतू प्रारंभ हो गयी है शरीर की बेट्री की डिस्चार्ज का समय है ,अपने वैद्य से मिल के अपनी प्रकृती के अनुसार रसायन सेवन आरम्भ कर दें |मेद के शरीर से निष्कासन का ये उत्तम समय है शब्दों में मोटापा घटाने पे जोर दें ऐसा समय हें इसका उपयोग करें|,दुसरे कृपया विज्ञापनों का सन्दर्भ न दें | अधिक विचारविमर्श के लिये msz box में आप सादर आमंत्रित है, हाँ उत्त्तर मेरी सुविधा से ही दिया जायेगा |
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