ज्योतिष में जिनकी जिज्ञासा है ,उनके लिए ,सभी मुझसे सहमत हों ,ऐसा कोइ आग्रह नहीं है| प्रश्न हे राहू और केतु क्या है,मैंने क्या समझा बस वो ही यंहा है| बड़ा ही स्वाभाविक प्रश्न,जब आप सचमुच ज्योतिष को जानना चाहते हैं।बड़ी दुविधा।जितने मुँह उतनी बातें।किसकी मानें, किसकी न मानें।चलिए थोड़ा अलग तरीके से सोचते हैं,मेरा प्रयास सार्थक हो ।
ज्योतिष 6 मूल भारतीय या हिन्दू शास्त्रों या विज्ञान में से एक है।भारतीय शास्त्रों का मूल अध्धयन का तरीका थोड़ा भिन्न है,इसमें पहले शास्त्र को जीवन का एक अंग बना कर के आत्मसात किया जाता है,तत्पश्चात उसका मनन या चिंतन।संस्कृत,ओर संगीत के यही परिपाटी अभी भी चली आ रही है,ज्योतिष की कमोबेश लुप्त होती जा रही है।खैर
हमारी समस्त सृष्टि का मूल आधार ऊर्जा है।अब चाहे आप पुराण पढ़ें या बिगबैंग थ्योरी,।
अब इसको।ऐसा समझें,अपने संदर्भ में के,कुछ ऊर्जा हम स्वीकार कर लेते हैं कुछ स्वीकार नही कर पाते,या यूं कंहूँ कुछ हम पचा लेते हैं कुछ पचा नही पाते।साधारण रूप में जो कुछ भी हम पचा सकते हैं,वह हमारे लिए अमृत है पॉजिटिव है ,ओर जो पचा नहीं पाते वह नेगेटिव है,हमे हानि पंहुचता है इसलिए,जहर है।तो ज्योतिष के फलित में हम मूल रूप से उन आकाशीय पिंडों का माध्यम से जिन्हें हमारा शास्त्र उनकी ऊर्जा के कारण जीवित मानता है उनसे प्रदत्त उर्जायों का आकलन कर प्रकृति के चौथे आयाम काल से से उसका संबंध स्थापित करते हैं।अब राहु और केतु तो दोनों ही अशरीरी हैं परंतु ये दोनों विशुद्ध उर्जायों से बने दो स्थान विशेष हैं जिनका अविष्कार या खोज हमारे प्राचीन ऋषियों ने किया।ये दोनों ऊर्जा के प्रारूप हमारे ऊपर उतना ही प्रभाव डालते हैं जितने की स्थूल ग्रह।यंहा हमे यह स्मरण रखना है हमारा अध्धयन उर्जायों का है,इसलिए राहु केतु को उतना ही मान है जितना के अन्य ग्रहों ,सूर्य और एक उपग्रह चंद्र को।
इन उर्जायों का संबंध कॉल नामक आयाम से है।काल के भी तीन रूप ,भूत भविष्य और वर्तमान।यंहा भी इनका सुक्षतम प्रयोग।वर्तमान का अर्थ ये जीवन,भूत का मतलब पिछले ओर भविष्य का मतलब आगे आने वाले जीवन से।आयुर्वेद का एक सूत्र का यंहा उल्लेख करूँगा"सर्वदा सर्व भावनाम, सामान्यम वृद्धि कारणं"अर्थात एक जैसी चीज अपने जैसी चीजों को ही बढ़ाती है ,ओर यह नियम सर्वत्र लागू होता है।तो वर्तमान जीवन प्रत्यक्ष है तो प्रयत्क्ष ग्रह ,ओर शेष दो अप्रत्यक्ष कालों के लिए अप्रत्यक्ष ग्रह।ये सामान्य ओर इसी के साथ ओर एक सामान्य ये वर्तमान में जब पीछे देखना है तो राहु काअध्ययन और जब आगे देखना है तो केतु का अध्धयन।ओर सच कंहूँ तो ये सीखाने जैसा या सीखने जैसा नही।अध्धयन मनन कीजिये ,स्वयं ही अन्तः स्फुरण हो जायेगा।शेष हरि इच्छा।द्रष्टिकोण
ज्योतिष 6 मूल भारतीय या हिन्दू शास्त्रों या विज्ञान में से एक है।भारतीय शास्त्रों का मूल अध्धयन का तरीका थोड़ा भिन्न है,इसमें पहले शास्त्र को जीवन का एक अंग बना कर के आत्मसात किया जाता है,तत्पश्चात उसका मनन या चिंतन।संस्कृत,ओर संगीत के यही परिपाटी अभी भी चली आ रही है,ज्योतिष की कमोबेश लुप्त होती जा रही है।खैर
हमारी समस्त सृष्टि का मूल आधार ऊर्जा है।अब चाहे आप पुराण पढ़ें या बिगबैंग थ्योरी,।
अब इसको।ऐसा समझें,अपने संदर्भ में के,कुछ ऊर्जा हम स्वीकार कर लेते हैं कुछ स्वीकार नही कर पाते,या यूं कंहूँ कुछ हम पचा लेते हैं कुछ पचा नही पाते।साधारण रूप में जो कुछ भी हम पचा सकते हैं,वह हमारे लिए अमृत है पॉजिटिव है ,ओर जो पचा नहीं पाते वह नेगेटिव है,हमे हानि पंहुचता है इसलिए,जहर है।तो ज्योतिष के फलित में हम मूल रूप से उन आकाशीय पिंडों का माध्यम से जिन्हें हमारा शास्त्र उनकी ऊर्जा के कारण जीवित मानता है उनसे प्रदत्त उर्जायों का आकलन कर प्रकृति के चौथे आयाम काल से से उसका संबंध स्थापित करते हैं।अब राहु और केतु तो दोनों ही अशरीरी हैं परंतु ये दोनों विशुद्ध उर्जायों से बने दो स्थान विशेष हैं जिनका अविष्कार या खोज हमारे प्राचीन ऋषियों ने किया।ये दोनों ऊर्जा के प्रारूप हमारे ऊपर उतना ही प्रभाव डालते हैं जितने की स्थूल ग्रह।यंहा हमे यह स्मरण रखना है हमारा अध्धयन उर्जायों का है,इसलिए राहु केतु को उतना ही मान है जितना के अन्य ग्रहों ,सूर्य और एक उपग्रह चंद्र को।
इन उर्जायों का संबंध कॉल नामक आयाम से है।काल के भी तीन रूप ,भूत भविष्य और वर्तमान।यंहा भी इनका सुक्षतम प्रयोग।वर्तमान का अर्थ ये जीवन,भूत का मतलब पिछले ओर भविष्य का मतलब आगे आने वाले जीवन से।आयुर्वेद का एक सूत्र का यंहा उल्लेख करूँगा"सर्वदा सर्व भावनाम, सामान्यम वृद्धि कारणं"अर्थात एक जैसी चीज अपने जैसी चीजों को ही बढ़ाती है ,ओर यह नियम सर्वत्र लागू होता है।तो वर्तमान जीवन प्रत्यक्ष है तो प्रयत्क्ष ग्रह ,ओर शेष दो अप्रत्यक्ष कालों के लिए अप्रत्यक्ष ग्रह।ये सामान्य ओर इसी के साथ ओर एक सामान्य ये वर्तमान में जब पीछे देखना है तो राहु काअध्ययन और जब आगे देखना है तो केतु का अध्धयन।ओर सच कंहूँ तो ये सीखाने जैसा या सीखने जैसा नही।अध्धयन मनन कीजिये ,स्वयं ही अन्तः स्फुरण हो जायेगा।शेष हरि इच्छा।द्रष्टिकोण
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