श्री
एक पुराना चुटकुला ,माता बच्चे के अध्यापक से – मास्टरजी मेरा बच्चा बड़ा कोमल है , इसे समझाना हो या डांटना हो तो इसे कुछ मत कहना ,इसके पास वाले बच्चे को डांट देना ये भी समझ जायेगा | फ़िलहाल ये चुटकुला हकीकत हो चूका है , समझे ...........पड़ोसी हे न अपना , चीन | हाल देखा उसका
कभी सोचा ये हाल क्यूँ है उसका ,नहीं न ...अजी वंहा वायरस फैल गया है न करोना ,वो कुछ करने नहीं दे रहा |क्या करोना कोई नया वायरस है , जिसका ये एक दम से आक्रमण हो गया ,तो जवाब है नहीं, पर ये नए रूप में आया है तयारी के साथ जिसका प्रतिरोध न तो उपलब्ध दवाएं कर पा रहीं ,न ही हमारा शरीर| ऐसी स्थिथि क्यूँकर आयी ....कुछ सोचा|
चलिये थोडा में समझाने का प्रयास करूँ, अपनी अल्पमति से |आयुर्वेद का एक सामान्य सा सिद्धांत है , सभी रोग मन्दाग्नि से होते हैं,अब ये मन्दाग्नि क्या है ? शरीर में बाहर से प्रविष्ट हुये खाद्य पदार्थों को शरीर के अनुरूप परिवर्तित करना जिस से शरीर उन्हें समग्र रूप से गृहण कर स्व रक्षण/पोषण/वर्धन जो भी यथावश्यक हो, कर सके| अब मन्दाग्नि होती क्यूँ है? इसके कुछ प्राकृत कारण हैं यथा ऋतु (ग्रीष्म/वर्षा) यथा काल (रात्री/उषाकाल) आयु (वृद्ध )|और अप्राकृत कारणों में शास्त्रोक्त मिथ्या आहार विहार| पुनश्च: ये मिथ्या आहार विहार क्या हैं,सामान्य अर्थों में देश,काल और वातावरण के विरुद्ध किये जाने वाले आहार और विहार यथा ठण्ड के दिनों में icecream खाना,भरे पेट पर पुनश्च: भोजन करना ,भरे पेट से दक्षिण कुक्षि से आराम करना या मेहनत का काम करना |
मूल रूप से हम भारतीयों की भोजन वयवस्था जिस विज्ञानं के अनुरूप है,उसे सामान्य रूप से आयुर्वेद के नाम से जाना जाता है,आयुर्वेद के प्रथम सिद्धांत स्वस्थ के स्वास्थ का रक्षण जिन विधियों से किया जाता रहा है उनमे से सर्वप्रमुख हम भारतीयों के रसोई घर में ही निहित है अर्थात इस विज्ञान का एक बड़ा भाग हमारी रसोई में समाया हुआ है,जब से हमारी खान पान व्यवस्था रसोई से निकलकर व्यवसायीक प्रतिस्पर्धा वाले लोगों के हाथों में पहुंच गई है ये मूल उद्देश्य ख़त्म हो कर के मात्र स्वाद ,और उदरपूर्ति का मात्र रह गया है स्वस्थ नाम का कंटेंट इस में से गायब है|
ओजस्वी औषधालय , हापुड़ में हमारा प्रयास मूल रूप से सभी रोगी और उनके परिवार जनों को ये समझाने में रहता है के भोजन आपका ( जो भी आप मुख से गृहण कर रहे हैं) औषधि से ज्यादा महत्वपूर्ण है उसे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार लीजिये,हमरी जरूरत कम से कम पड़ेगी| हमारे इसी सिद्धांत के कारण हमे मात्र रुग्ण नहीं बल्कि परिवार प्राप्त होतें हैं,जिस कारण से हम अपने आप को ओजस्वी औषधालय मात्र न मानकर ओजस्वी औषधालय परिवार मानते हैं|
हमारा भोजन न केवल हमारी दैनिक आवश्यकताओं को पूर्ण करता है वरन सही रूप से किआ हुआ भोजन (आहार) ओर् सामायिक क्रिया कलाप( विहार) न केवल हमें स्वस्थ रखतें है अपितु रोगों से लड़ने के भी सक्षम बनाते हैं| सामान्य रूप से औषधालय में आने वाले नवीन रोगी so called over medication का शिकार होते हैं| रोग का मूल कारण समझे बिना ,बिना व्यवस्था पत्र के औषधि सेवन करने वाले महानुभवों का एक बहुत बड़ा प्रतिशत हमारे आस पास मोजूद है ,और इन सबके दुष्परिणाम आने पर भी हम सब चेतने को तैयार नहीं| ख़ैर ये भी शिक्षा का ही विषय| मूल विषय पर आते हैं ----
चीन के लोगों की खान पान व्यवस्था के चित्र आजकल हम सभी के whatsapp और अन्य social media plateforms पर उपलब्ध हैं, मुझे लगता है उपर लिखा विवरण ये सब समझाने के लिए पर्याप्त है| अपने क्षेत्रीय और आंचलिक भोजन को अपनाइए ,इसके लिए अपने निकट के आयुर्वेदिक पद्वीधरों से संपर्क करें ,दादा दादी नाना नानी की सहायता लें|आपकी शंकाओं का inbox और whatsapp 9897197491 पर स्वागत है|
ओजस्वी आयुर्वेद परिवार आपके स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन की कामना करते हैं | धन्यवाद|

