Saturday, September 26, 2020

कोरोना को रोना

श्री
एक पुराना चुटकुला ,माता बच्चे के अध्यापक से – मास्टरजी मेरा बच्चा बड़ा कोमल है , इसे समझाना हो या डांटना हो तो इसे कुछ मत कहना ,इसके पास वाले बच्चे को डांट देना ये भी समझ जायेगा | फ़िलहाल ये चुटकुला हकीकत हो चूका है , समझे ...........पड़ोसी हे न अपना , चीन | हाल  देखा उसका
कभी सोचा ये हाल क्यूँ है उसका ,नहीं न ...अजी वंहा वायरस फैल गया है न करोना ,वो कुछ करने नहीं दे रहा |क्या करोना कोई नया वायरस है , जिसका ये एक दम से आक्रमण हो गया ,तो जवाब है नहीं, पर ये नए रूप में आया है तयारी के साथ जिसका प्रतिरोध न तो उपलब्ध दवाएं कर पा  रहीं ,न ही हमारा शरीर| ऐसी स्थिथि क्यूँकर आयी ....कुछ सोचा|
चलिये थोडा में समझाने का प्रयास करूँ, अपनी अल्पमति से |आयुर्वेद का एक सामान्य सा सिद्धांत है , सभी रोग मन्दाग्नि से होते हैं,अब ये मन्दाग्नि क्या है ? शरीर में बाहर से प्रविष्ट हुये खाद्य पदार्थों को शरीर के अनुरूप परिवर्तित करना जिस से शरीर उन्हें समग्र रूप से गृहण कर स्व रक्षण/पोषण/वर्धन जो भी यथावश्यक हो, कर सके| अब मन्दाग्नि होती क्यूँ है? इसके कुछ प्राकृत कारण हैं यथा ऋतु (ग्रीष्म/वर्षा) यथा काल (रात्री/उषाकाल) आयु (वृद्ध )|और  अप्राकृत कारणों में शास्त्रोक्त मिथ्या आहार विहार| पुनश्च: ये मिथ्या आहार विहार क्या हैं,सामान्य अर्थों में देश,काल और वातावरण के विरुद्ध किये जाने वाले आहार और विहार यथा ठण्ड के दिनों में icecream खाना,भरे पेट पर पुनश्च: भोजन करना ,भरे पेट से दक्षिण कुक्षि से आराम करना या मेहनत का काम करना |
मूल रूप से हम भारतीयों की भोजन वयवस्था जिस विज्ञानं के अनुरूप है,उसे सामान्य रूप से आयुर्वेद के नाम से जाना जाता है,आयुर्वेद के प्रथम सिद्धांत स्वस्थ के स्वास्थ का रक्षण जिन विधियों से किया जाता रहा है उनमे से सर्वप्रमुख हम भारतीयों के रसोई घर में ही निहित है अर्थात इस विज्ञान का एक बड़ा भाग हमारी रसोई में समाया हुआ है,जब से हमारी खान पान व्यवस्था रसोई से निकलकर व्यवसायीक प्रतिस्पर्धा वाले लोगों के हाथों में पहुंच गई है ये मूल उद्देश्य ख़त्म हो कर के मात्र स्वाद ,और उदरपूर्ति का मात्र रह गया है स्वस्थ नाम का कंटेंट इस में से गायब है|
ओजस्वी औषधालय , हापुड़ में हमारा प्रयास मूल रूप से सभी रोगी और उनके परिवार जनों को ये समझाने में रहता है के भोजन आपका ( जो भी आप मुख से गृहण कर रहे हैं) औषधि से ज्यादा महत्वपूर्ण है उसे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार लीजिये,हमरी जरूरत कम से कम पड़ेगी| हमारे इसी सिद्धांत के कारण हमे मात्र रुग्ण नहीं बल्कि परिवार प्राप्त होतें हैं,जिस कारण से हम अपने आप को ओजस्वी औषधालय मात्र न मानकर ओजस्वी औषधालय परिवार मानते हैं|
हमारा भोजन न केवल हमारी दैनिक आवश्यकताओं को पूर्ण करता है वरन सही रूप से किआ हुआ भोजन (आहार) ओर् सामायिक क्रिया कलाप( विहार) न केवल हमें स्वस्थ रखतें है अपितु रोगों से लड़ने के भी सक्षम बनाते हैं| सामान्य रूप से औषधालय में आने वाले नवीन रोगी so called over medication का शिकार होते हैं| रोग का मूल कारण समझे बिना ,बिना व्यवस्था पत्र के औषधि सेवन करने वाले महानुभवों का एक बहुत बड़ा प्रतिशत हमारे आस पास मोजूद है ,और इन सबके दुष्परिणाम आने पर भी हम सब चेतने को तैयार नहीं| ख़ैर  ये भी शिक्षा का ही विषय| मूल विषय पर आते हैं ----
चीन के लोगों की खान पान व्यवस्था के चित्र आजकल हम सभी के whatsapp और अन्य social media plateforms पर उपलब्ध हैं, मुझे  लगता है उपर लिखा विवरण ये सब समझाने के लिए पर्याप्त है| अपने क्षेत्रीय और आंचलिक भोजन को अपनाइए ,इसके लिए अपने निकट के आयुर्वेदिक पद्वीधरों से संपर्क करें ,दादा दादी नाना नानी की सहायता लें|आपकी शंकाओं का  inbox और whatsapp 9897197491 पर स्वागत है|
ओजस्वी आयुर्वेद परिवार आपके स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन की कामना करते हैं | धन्यवाद|

Thursday, September 10, 2020

 पुनश्च : एकदा

वैद्य मित्रों के लिए मनोगत,
मित्रों!
जीवन मे अनुभव चीजों के अर्थ किस तरह से बदल देता है,ये जानना भी किसी चमत्कार के जैसा ही है।
आयुर्वेदाचार्य ,प्रथम वर्ष ,वैद्यकीय सुभाषित साहित्यम ,रणजीत राय देसाई जी की पुस्तक में एक श्लोक है,जो सामान्य अर्थों में एक साधारण सा श्लोक दृष्टिगोचर होता है ,जिसका कोई महत्त्व हमें उस समय शायद ही विषय सामयिक लगा होगा।
सद्य फलन्ति गान्धर्वम ,मासमेकम पुराणकम।
वेदा फलन्ति कालेषु ,ज्योतिरवैद्यो निरन्तरं।।
निश्चय ही अनेकानेक वैद्यमित्रों को शायद स्मरण भी न हो,क्योंकि थोड़ा लीक से हटकर श्लोक है।साधारण रूप से इसका अर्थ पुस्तक के ऐसा लिखा है,के गान्धर्व विद्या ,नृत्य गायन शीघ्रता पूर्वक फल देने वाली होती है,पुराण का पाठ अपना फल देने के लिए महीने भर की मेहनत करवाता है।वेदों के फल बहुत काल मे मिलते हैं और ज्योतिष और वैद्यक के फल निरंतर मिलते रहते हैं।
मेरे वैद्यक जीवन के प्रारम्भ में ,अपने नगर के एक प्रतिष्ठित चिकित्सालय में जो कि धार्मिक चिकित्सालय था,में सेवा देने के साथ साथ प्रारम्भ हुआ था, एक भद्र महिला मेरे पास चिकित्सा के लिए आई थी।मैं नया नया वैद्य,ओर रोगिणी पुरानी रोग से पीड़ित।रोगिणी की मात्र एक समस्या के मेरे पूरे शरीर मे चींटियां चलती है हर वक़्त।महिला प्रतिष्टित परिवार से थीं ,लगभग आधुनिक चिकित्सा के सभी निदान कर चुकी थी कोई लक्षण नही था । सम्मिलित रुप से सभी चिकित्सक इसे मनोव्यथा मान कर चिकित्सा कर चुके थे,ओर उक्त चिकित्सा से भी कोई लाभ नहीं था, रुग्णा औषधालय में मेरे समीप बैठ कर अपनी सम्पूर्ण काया को कभी यंहा कभी वंहा मलती थी ।आयु लगभग उस समय 60 वर्ष के आस पास होगी।बड़ी ही कातर दृष्टि से मेरी तरफ हाथ जोड़ती ,वैद्य जी ,कुछ उपकार कर दो या जहर का इंजेकशन लगा दो ,में बहुत थक गई हूं।
पूज्य गुरुदेव के स्मरण के साथ औषधि प्रारम्भ की।
रोग का अधिष्ठान प्रश्न से संपुर्ण त्वचा थी,मनोवह स्रोट्स के अनुसार मज्जा अधिष्ठान थी।दोनों ही वात के अधिष्ठान मानकर वातशामक ,अनुलोमक औषधि दे दी गई ।
3 दिन बाद रुग्णा कुछ संयत थी निद्रा आ गयी थी, कातरता अल्प थी।
शुद्ध पित्तल प्रकृति की सी रुग्णा, उसके 3 दिन बाद पुनः पहली अवस्था मे ।औषधि की कभी कारमुक्ता दिखती कभी व्यर्थ ।मित्रो कभी कभी किसीरोगी की स्थिति रोगी से ज्यादा वैद्य को(dr को नहीं,कारण संतान वत रोगी को संभालने का निर्देश केवल आयुर्वेद शास्त्र का है,आधुनिक शास्त्र का नही,मेरे बहुत से मित्रों ने इसे महसूस किया होगा।)संताप दे देती है।ऐसी ही एक स्थिति में रुग्णा से बातचीत करते समय ,अचानक से रुग्णा बोली ,ऐसा लगता है के जैसे भूखी चीटियां कुछ खाने को मेरे पूरे शरीर मे दौड़ लगा रही है,अनायास मेरे मुँह से निकल गया के भूखी है!तो इन्हें भोजन कर दो।अचानक से वाग्भट ,हृदय का कुष्ठ/श्वित्र चिक्तिसा का व्रत,दम यम सेवा,वाला श्लोक स्मरण हो आया ।मेरा द्वितीय अनुराग ,आयुर्वेद के अतिरिक्त ज्योतिष होने के कारण से ,मैंने औषधि के साथ साथ रुग्णा को प्रतिदिन चींटियों को सिता मिश्रित भुर्जित पिष्ट गोधूम डालने के लिए प्रेरित किया तीसरे दिन से रुग्णा स्वस्थ थी।उसके जन्मांग का अध्धयन कर उसे लगभग 3 माह औषधि दी गई।साधारण रूप से।अनुलोमनार्थ अविपत्तिकर चूर्ण
मज्जागत वातशामक ,ज्योतिष्मती तेल, सारस्वत चूर्ण,गोघृत
मित्रो ये एक ऐसे घटना थी ,जिसने कुछ चीजो कि देखने की दृष्टि बदल दी।मेरे दोनी विषय होने के कारण मुझे ऊपर वाला श्लोक हमेशा ही प्रिय रहा ।परंतु उस रुग्णा के बाद मुझे कुछ अर्थ यूं प्रतीत होने लगा,शायद विद्यार्थी हूँ इसलिये
नृत्य गायन शीघ्रता से आत्मसात किये जा सकते है,पुराणो को जानने के लिए माह भर का अध्धयन आवश्यक है।वेद वर्षानुवर्ष लग जाने के बाद अपने अर्थ को प्रदर्शित करते हैं।और आयुर्वेद और ज्योतिष को जान ना है तो सदैव,निरंतर ,अनवरत अभ्यास करना पड़ेगा। आयुर्वेद करना है तो आयुर्वेद में जीना ,आयुर्वेद में सोचना आयुर्वेद में हंसना ओर आयुर्वेद में रोना पड़ेगा।दूसरे रास्ते ,पैथी का मोह जब तक नहीं छूटेगा ,आयुर्वेद में उन्नति का पथ तब तक अवरुद्ध ही रहेगा।
किसी आयुर्वेद प्रवर को मेरे कथन में त्रुटि लगे तो विद्यार्थी समझ कर क्षमा करने की कृपा करें।मेरे कोई मित्र मेरे कथन से प्रेरणा लेकर आयुर्वेद अनुगामी बन जाएं तो मेरा ये छोटा सा लेखन सफल हो ,ऐसी मनो कामना सहित

ज्योतिरवैद्यो निरन्तरं

Thursday, February 13, 2020

श्री
एक पुराना चुटकुला ,माता बच्चे के अध्यापक से – मास्टरजी मेरा बच्चा बड़ा कोमल है , इसे समझाना हो या डांटना हो तो इसे कुछ मत कहना ,इसके पास वाले बच्चे को डांट देना ये भी समझ जायेगा | फ़िलहाल ये चुटकुला हकीकत हो चूका है , समझे ...........पड़ोसी हे न अपना , चीन | हाल  देखा उसका
कभी सोचा ये हाल क्यूँ है उसका ,नहीं न ...अजी वंहा वायरस फैल गया है न करोना ,वो कुछ करने नहीं दे रहा |क्या करोना कोई नया वायरस है , जिसका ये एक दम से आक्रमण हो गया ,तो जवाब है नहीं, पर ये नए रूप में आया है तयारी के साथ जिसका प्रतिरोध न तो उपलब्ध दवाएं कर पा  रहीं ,न ही हमारा शरीर| ऐसी स्थिथि क्यूँकर आयी ....कुछ सोचा|
चलिये थोडा में समझाने का प्रयास करूँ, अपनी अल्पमति से 
|आयुर्वेद का एक सामान्य सा सिद्धांत है , सभी रोग मन्दाग्नि से होते हैं,
अब ये मन्दाग्नि क्या है ?
 शरीर में बाहर से प्रविष्ट हुये खाद्य पदार्थों को शरीर के अनुरूप परिवर्तित करना जिस से शरीर उन्हें समग्र रूप से गृहण कर स्व रक्षण/पोषण/वर्धन जो भी यथावश्यक हो, कर सके| 
अब मन्दाग्नि होती क्यूँ है?
 इसके कुछ प्राकृत कारण हैं यथा ऋतु (ग्रीष्म/वर्षा) यथा काल (रात्री/उषाकाल) आयु (वृद्ध )|और  अप्राकृत कारणों में शास्त्रोक्त मिथ्या आहार विहार| पुनश्च: ये मिथ्या आहार विहार क्या हैं,सामान्य अर्थों में देश,काल और वातावरण के विरुद्ध किये जाने वाले आहार और विहार यथा ठण्ड के दिनों में icecream खाना,भरे पेट पर पुनश्च: भोजन करना ,भरे पेट से दक्षिण कुक्षि से आराम करना या मेहनत का काम करना |
मूल रूप से हम भारतीयों की भोजन वयवस्था जिस विज्ञानं के अनुरूप है,उसे सामान्य रूप से आयुर्वेद के नाम से जाना जाता है,आयुर्वेद के प्रथम सिद्धांत स्वस्थ के स्वास्थ का रक्षण जिन विधियों से किया जाता रहा है उनमे से सर्वप्रमुख हम भारतीयों के रसोई घर में ही निहित है अर्थात इस विज्ञान का एक बड़ा भाग हमारी रसोई में समाया हुआ है,जब से हमारी खान पान व्यवस्था रसोई से निकलकर व्यवसायीक प्रतिस्पर्धा वाले लोगों के हाथों में पहुंच गई है ये मूल उद्देश्य ख़त्म हो कर के मात्र स्वाद ,और उदरपूर्ति का मात्र रह गया है स्वस्थ नाम का कंटेंट इस में से गायब है|
ओजस्वी औषधालय , हापुड़ में हमारा प्रयास मूल रूप से सभी रोगी और उनके परिवार जनों को ये समझाने में रहता है के भोजन आपका ( जो भी आप मुख से गृहण कर रहे हैं) औषधि से ज्यादा महत्वपूर्ण है उसे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार लीजिये,हमरी जरूरत कम से कम पड़ेगी| हमारे इसी सिद्धांत के कारण हमे मात्र रुग्ण नहीं बल्कि परिवार प्राप्त होतें हैं,जिस कारण से हम अपने आप को ओजस्वी औषधालय मात्र न मानकर ओजस्वी औषधालय परिवार मानते हैं|
हमारा भोजन न केवल हमारी दैनिक आवश्यकताओं को पूर्ण करता है वरन सही रूप से किआ हुआ भोजन (आहार) ओर् सामायिक क्रिया कलाप( विहार) न केवल हमें स्वस्थ रखतें है अपितु रोगों से लड़ने के भी सक्षम बनाते हैं| सामान्य रूप से औषधालय में आने वाले नवीन रोगी so called over medication का शिकार होते हैं| रोग का मूल कारण समझे बिना ,बिना व्यवस्था पत्र के औषधि सेवन करने वाले महानुभवों का एक बहुत बड़ा प्रतिशत हमारे आस पास मोजूद है ,और इन सबके दुष्परिणाम आने पर भी हम सब चेतने को तैयार नहीं| ख़ैर  ये भी शिक्षा का ही विषय| मूल विषय पर आते हैं ----
चीन के लोगों की खान पान व्यवस्था के चित्र आजकल हम सभी के whatsapp और अन्य social media plateforms पर उपलब्ध हैं, मुझे  लगता है उपर लिखा विवरण ये सब समझाने के लिए पर्याप्त है| अपने क्षेत्रीय और आंचलिक भोजन को अपनाइए ,इसके लिए अपने निकट के आयुर्वेदिक पद्वीधरों से संपर्क करें ,दादा दादी नाना नानी की सहायता लें|आपकी शंकाओं का  inbox और whatsapp 9897197491 पर स्वागत है|
ओजस्वी आयुर्वेद परिवार आपके स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन की कामना करते हैं | धन्यवाद|

Sunday, October 20, 2019

अभी पिछेले हफ्ते की ही बात है,फ़ेसबुक के किसी ग्रुप पर किसी ने प्रश्न किया था के साहब मेरा 5 वर्ष का बच्चा है, बोलने में शब्द इधर से उधर कर देता है,बात नही सुनता,जैसा कहता हूँ वैसा नहीं करता,पढ़ाई में बिल्कुल ध्यान नहीं है।प्रतिप्रश्न में मैंने भी लिख दिया भाई आपका बच्चे वाला निर्णय गलत हो गया ,आपको रोबोट की आवश्यकता थी।बाकी कुछ लोगों ने इलाज भी लिख मारे ,कंसलटेंट का पता भी दे दिया ,अपना अड्रेस भी चिपका दिया।खैर गूगल बाबा का प्रसाद विधि पूर्वक सेवन न करने से ही ये दोष होता है।सामान्य रूप से ये पीड़ा हर किसी गूगल भक्त  माता पिता की है।
सामान्य रूप से 2 वर्ष के बच्चे का शब्दकोश 20 शब्दों के आसपास का होता है,बच्चे ने पहली बार मे जो समझा वही अंकित हो जाता है,उसमे परिवर्तन सामान्य रूप से 7 वर्ष की अवस्था मे होना शुरू होता है,हर एक बच्चे के लिए ये व्यवस्था अलग उम्र में अलग रूप में होती है,इसे एकीकृत कर के कोई व्यवस्था नही बनाई जा सकती मात्र अनुसरण रूपी अनुसंधान किआ जा सकता है।किसी भी बच्चे के सामान्य रूप से स्वस्थ होने का सामान्य लक्षण है उसका जिज्ञासु होना,आप मेरे मत से सहमत न हो भले,परन्तु मै अपने कक्ष में प्रवेश किये बच्चे के उछलकूद के आधार पर ही उसकी औषध की मात्रा का विनिश्चय आराम से कर लेता हूँ।शैतान बच्चे आराम से मुझसे प्रसन्न रहते हैं,क्योंकि उनको मात्र अर्क रूप के मधुर क्वाथ जैसे सूक्ष्म औषधियों से तुरंत आराम आ जाता है,इसके विपरीत अति सुस्त बच्चों को सदैव महुर्मुह वाली औषधी योजना करनी पड़ती है।
यंहा में सभी माता पिताओं से अनुरोध करना चाहता हूँ,बच्चे के लिए अपने प्रारम्भ काल में स्वास्थ्य को प्राप्त करना मूल उद्देश्य है,स्वस्थ शिशु से स्वस्थ बाल का निर्माण होगा ,जिसका मस्तिष्क स्वस्थ होगा वही शिक्षा को समग्र ग्रहण करने की पात्रता भी रखेगा।हमारा वैदिक धर्म भी उपनयन के लिए कम से कम 8 वर्ष ओर सामान्य रूप से 11 वर्ष की आयु को प्रस्तावित करता है।यह समय शिशुओं ,बालकों के लिए मात्र गणित और भाषा के प्रारंभिक सूत्रों को आत्मसात करने मात्र के लिए श्रेष्ठ होता है।अतः बच्चोंह को बच्चा ही रहने दें,विश्वविद्यालयों के पदवीधर न बनाएं,उन्हें खूब खेलने दें खूब खाने दें।कोई समस्या आये तो अपने आसपास के चिकित्सक से निसंकोच सलाह लें।सामान्य रूप से आयुर्वेदिक दिनचर्या का अभ्यास करें और अपने बच्चों को भी कराएं।
आपकी अनुभूतियाँ,मार्गदर्शन ,समस्या सभी आमन्त्रित हैं।

Monday, September 23, 2019

राहु केतु : मेरा द्रष्टिकोण

ज्योतिष  में जिनकी जिज्ञासा है ,उनके लिए ,सभी मुझसे सहमत हों ,ऐसा कोइ आग्रह नहीं है| प्रश्न हे राहू और केतु क्या है,मैंने क्या समझा बस वो ही यंहा है|  बड़ा ही स्वाभाविक प्रश्न,जब आप सचमुच ज्योतिष को जानना चाहते हैं।बड़ी दुविधा।जितने मुँह उतनी बातें।किसकी मानें, किसकी न मानें।चलिए थोड़ा अलग तरीके से सोचते हैं,मेरा प्रयास सार्थक हो ।
ज्योतिष 6 मूल भारतीय या हिन्दू शास्त्रों या विज्ञान में से एक है।भारतीय शास्त्रों का मूल अध्धयन का तरीका थोड़ा भिन्न है,इसमें पहले शास्त्र को जीवन का एक अंग बना कर के आत्मसात किया जाता है,तत्पश्चात उसका मनन या चिंतन।संस्कृत,ओर संगीत के यही परिपाटी अभी भी चली आ रही है,ज्योतिष की कमोबेश लुप्त होती जा रही है।खैर
हमारी समस्त सृष्टि का मूल आधार ऊर्जा है।अब चाहे आप पुराण पढ़ें या बिगबैंग थ्योरी,।
अब इसको।ऐसा समझें,अपने संदर्भ में के,कुछ ऊर्जा हम स्वीकार कर लेते हैं कुछ स्वीकार नही कर पाते,या यूं कंहूँ कुछ हम पचा लेते हैं कुछ पचा नही पाते।साधारण रूप में जो कुछ भी हम पचा सकते हैं,वह हमारे लिए अमृत है पॉजिटिव है ,ओर जो पचा नहीं पाते वह नेगेटिव है,हमे हानि पंहुचता है इसलिए,जहर है।तो ज्योतिष के फलित में हम मूल रूप से उन आकाशीय पिंडों का माध्यम से जिन्हें हमारा शास्त्र उनकी ऊर्जा के कारण जीवित मानता है उनसे प्रदत्त उर्जायों का आकलन कर प्रकृति के चौथे आयाम काल से से उसका संबंध स्थापित करते हैं।अब राहु और केतु तो दोनों ही अशरीरी हैं परंतु ये दोनों विशुद्ध उर्जायों से बने दो स्थान विशेष हैं जिनका अविष्कार या खोज हमारे प्राचीन ऋषियों ने किया।ये दोनों ऊर्जा के प्रारूप हमारे ऊपर उतना ही प्रभाव डालते हैं जितने की स्थूल ग्रह।यंहा हमे यह स्मरण रखना है हमारा अध्धयन उर्जायों का है,इसलिए राहु केतु को उतना ही मान है जितना के अन्य ग्रहों ,सूर्य और एक उपग्रह चंद्र को।
इन उर्जायों का संबंध कॉल नामक आयाम से है।काल के भी तीन रूप ,भूत भविष्य और वर्तमान।यंहा भी इनका सुक्षतम प्रयोग।वर्तमान का अर्थ ये जीवन,भूत का मतलब पिछले ओर भविष्य का मतलब आगे आने वाले जीवन से।आयुर्वेद का एक सूत्र का यंहा उल्लेख करूँगा"सर्वदा सर्व भावनाम, सामान्यम वृद्धि कारणं"अर्थात एक जैसी चीज अपने जैसी चीजों को ही बढ़ाती है ,ओर यह नियम सर्वत्र लागू होता है।तो वर्तमान जीवन प्रत्यक्ष है तो प्रयत्क्ष ग्रह ,ओर शेष दो अप्रत्यक्ष कालों के लिए अप्रत्यक्ष ग्रह।ये सामान्य ओर इसी के साथ ओर एक सामान्य ये वर्तमान में जब पीछे देखना है तो राहु काअध्ययन और जब आगे देखना है तो केतु का अध्धयन।ओर सच कंहूँ तो ये सीखाने जैसा या सीखने जैसा नही।अध्धयन मनन कीजिये ,स्वयं ही अन्तः स्फुरण हो जायेगा।शेष हरि इच्छा।द्रष्टिकोण

Monday, April 11, 2016

दांतों का मामला

ये जो स्वास्थ्य का मामला है न ,बड़ा ही नाजुक सा है| हमारे यंहा के सभ्य लोग वैद्यों से बहस करेंगे वो भी किस बात पे के,जी फलां फलां टूथपेस्ट तो ऐसे काम करता है ,वैसे काम करता है उस से हमारे बच्चे के दांत ऐसे हो गये ,उसके कैल्सियम की कमी थी दांत ख़राब होने लगे थे उस से ठीक हो गए| आयुर्वेद के अनुसार दंतधावन के लिए मधुर रसात्मक द्रव्य का प्रयोग अनुचित है तो, एकदम........ अब तो उसमे नमक भी आता है!
सच तो ये है विज्ञापनों का जादू पता नहीं, कंहा तक, हमारे परिवेश में घुस चुका है और अब उस के परिणाम, जो की सभी चौकानें वाले है ,हम सभी के सामने आने लगें हैं | कोई जरा मुझे समझाये के मेरे भाई दांतों को मलहम से घिसने पर पोषण कैसे मिलेगा |
रोजाना के आने वाले छोटी उम्र के रोगी निश्चय ही अल्प सत्व वाले होते हें उनकी रोगों से लड़ने की क्षमता और बच्चों से अपेक्षाकृत कम ही होती है , बच्चे के माता पिता बच्चे के दांत साफ़ करने के पीछै तो पड़े रहेंगे ,परन्तु बच्चा अपना खाना ठीक से चबा रहा है , इस बात की और उनका ध्यान दिलाना भी मानो हमारा बड़ा अपराध.........|
खाने को ठीक से चबाने का सबसे बड़ा फायदा ये होता हें के मुह के अंदर भोजन उस सामान्य तापमान पर आ जाता हें, जिसका के शरीर में प्रवेश के लिए एकदम उपयुक्त तापमान रहे जिस से भोजन के पाचन का श्रीगणेश भली भांती हो सके | अगर किसी भी बड़ी मशीन की कार्यप्रणाली पर जरा सा भी ध्यान दें तो पता चलेगा के तापमान का नियंत्रण ही उत्पादन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता हें ,तो यही बात उस परमपिता की बनाई हुई मशीन पर भी तो लागु होती है | आयुर्वेद की महत्ता मात्र रोगों को ठीक करने के लिए मात्र नहीं है ये तो वो परम विज्ञानं हें जो ये सिखाता हें के रोग हो ही ना और साथ ही साथ जिया कैसे जाये|
बहुत छोटे बच्चो के माता पिता को में समझाता हूँ के इन बच्चों को दांत धोना मत सिखायें, इन्हे चबाना सिखायें, चबायेंगे तो स्वास्थ रहेंगे ये भी, इनके दांत भी | बच्चे उल्टा सीधा खायेंगे ,क्यूँकी वो आसानी से बाजार में उपलब्ध है ,उनका विज्ञापन भी है | अपने आस पास में ये रोज देखता हूँ आप भी देखते ही हे | उन बच्चो के दांत जब गिरने लगें और नए आने लगें तब बहुत मुलायम ब्रश से धीरे धीरे किसी बेहद बारीक़ पिसे हुए दंतमंजन से उन्हें ये सिखाएं | इसके लिए भुना पिसा सुहागा, बारीक पीसी हल्दी, बारीक पीसी सोना गेरू मिट्टी आदि का अपने स्थानीय वैद्य की सलाह से उपयोग किया जा सकता हें और ये चीजें अगर बच्चा निगल भी जाये तो, उपकार ही करेंगे अपकार नही! बारीक पीसी हेड़ भी प्रयोग की जा सकती है |
कोशिश करें बच्चों को बहुत ज्यादा ठंडी या बहुत ज्यादा गर्म चीजे (तापमान की दृष्टि से) सेवन न करनें दें | कारण अब आपको पता ही है
और हाँ खुद के चबाने पे भी जरा ध्यान दें बहुत सी बीमारी से बच जायेंगे |
ओजस्वी आयुर्वेद( डॉ शर्मा क्लिनिक) के लिए वैद्य विवेक शर्मा द्वारा लिखित एवं वैद्या सुधा शर्मा द्वारा सम्पादित इस लेख के माध्यम से जन जागरण के लिये ये सुचना देते हैं की ग्रीष्म ऋतू प्रारंभ हो गयी है शरीर की बेट्री की डिस्चार्ज का समय है ,अपने वैद्य से मिल के अपनी प्रकृती के अनुसार रसायन सेवन आरम्भ कर दें |मेद के शरीर से निष्कासन का ये उत्तम समय है शब्दों में मोटापा घटाने पे जोर दें ऐसा समय हें इसका उपयोग करें|,दुसरे कृपया विज्ञापनों का सन्दर्भ न दें | अधिक विचारविमर्श के लिये msz box में आप सादर आमंत्रित है, हाँ उत्त्तर मेरी सुविधा से ही दिया जायेगा |

सामान्य लोंगो के लिये आयुर्वेद

v    उद्धवर्तनं कफहरं मेदसः प्रविलापनं |
v    स्थिरीकरणमंगानाम त्वक्प्रसादकरं परम्||(अ.ह्र.सु.२.१५)
v उबटन
v कफ का नाश करने वाला,
v मेद को विलीन करने वाला,
v अंगों को स्थिर करने वाला होता है, और
v त्वचा को अतिशय निर्मल बनाता है|
v सामान्य लोंगो के लिये आयुर्वेद ........ इस क्रम में मित्रों आज हम प्रकाश डालेंगे उबटन के गुणों पर,
v वैसे तो इस क्रिया को हम लोग रोजाना ही करते , हाँ रूप थोडा सा बदल गया है ,दैनिक जीवन में हम जो साबुन का प्रयोग करते हैं वो असल में उबटन का ही बदला रूप है| अब रूप बदल गया है तो गुण भी बदल ही जायेंगे| जंहा एक और उबटन का उपक्रम आज के युग के अनुरूप अव्यहवारिक सा ,बहुत सारे समय का  उपयोग करने वाला है वंही साबुन का प्रयोग सामान्य और आसान प्रतीत होता है | दुसरे शब्दों में बहुत सारे पुराने उपक्रमों की तरह यह उपक्रम भी status simbale की तरह ही हमारे उपयोग में आज कल आता है जैसे- beauty parlour में होने वाले cleansing, scrubbing ,facial ये सभी उपक्रम मूल रूप से उबटन उपक्रम ही हैं,|बस इनसे आजकल उपरोक्त त्वचा को अतिशय निर्मल बनाने वाला गुण ही प्राप्त होता है| अब जब एक गुण प्राप्त होता है, तो बाकी सब गुण के बारे में क्या? वे सभी भी तो आजकल demands में हैं|
v  ओजस्वी आयुर्वेद (डॉ शर्मा क्लिनिक) ,हापुड़, में पिछले १२ वर्षो में वैद्या सुधा शर्मा ने ,अपने बहुत सारे रोगियों के साथ मिलकर  उबटन प्रयोग से,  मेद को विलीन करने वाले गुण को और कफ के नाश करने वाले गुण को भी प्राप्त करके अपने शास्त्रों के कथन को शतशः सत्य स्थापित किया है|
v अंग विशेष के बड़े हुए मेद /मोटापा ,या सारे  शरीर के मोटापे पर भी बिना कोई औषधी खाये भी, अतिशय उत्तम परिणाम मिलते है. हाँ ये बात जरूर है के समय रोज देना पड़ता है ,भोजन पर भी बहुत सारा बदलाव नही करना पड़ता ,और साथ ही साथ शरीर में रहने वाला आलस्य , दुखन भी ख़त्म होने लगते हैं ,शरीर में ताजगी बनी रहती है, दुसरे शब्दों में     life standerd का improvment होने लगता है ,पाचन सुधरने लगता है,पाचन सुधरने से, त्वचा निखरने लगती है.glow आने लगती है|
v मित्रों आने वाला मौसम ग्रीष्म ऋतू,त्वचा के लिये सबसे सम्वेदनशील मौसम, सभी सौन्द्र्यप्रसधान बनाने वाली कम्पनियों ने कमर कस  कर विज्ञापन शुरू कर ही दिये हैं |  त्वचा है आपकी ......थोडा इसे समय दीजिये| प्राकृतिक साधनों का उपयोग कीजिये, ये सुरक्षित और दीर्घ काल तक के परिणाम देने वाले हें | किसी भी तरह के सहयोग,या आपकी प्रकृती के आधार पर उबटन के चुनाव के लिये आपके  प्रश्नों और आपका स्वागत है | msz box के उत्तर हमारी सुविधानुसार या अपने निकटतम वैद्य को संपर्क करें|

v हमारे प्रयास को अपना समय देकर पढने के लिये आपका धन्यवाद|